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चीन में मार्केट ठण्डा पडा है व दाम लगातार गिर रहे हैं
-अंजन रॉय- -राष्ट्रदूत दिल्ली ब्यूरो- नई दिल्ली, २४ सितम्बर। चीन की अर्थव्यवस्था लगातार गिर रही है। पिछले २३ महीनों से कीमतें लगातार घट रही हैं। इसने चीन के केन्द्रीय बैंक की चिंताएं बढा दी हैं। इस तरह का ’’फैक्टरी ग्रेट डिफ्लेशन’’ (उत्पादकों द्वारा लगाई गई उनके माल की कीमत में कुछ गिरावट) अर्थव्यवस्था की संरचनात्मक सख्ती को दर्शाता है। मूल समस्या यह है कि उपभोत्त*ा माल कम खरीद रहे हैं और गिरती कीमतों के कारण उपभोत्त*ाओं में नए मकान जैसी बडी खरीद के लिए आत्मविश्वास नहीं हैं। चीन के अधिकारियों ने अत्यधिक गर्म बाजार को शांत करने के लिए घर खरीदने पर कई प्रतिबंध लगाए थे। गर्म बाजार, यानी जब मकान जल्दी जल्दी बेचे जाते हैं। अब यही प्रतिबंध उल्टे पड गए हैं। इसके अलावा, हाल ही में व्यापक नीतिगत बदलाव तब किए गए जब सुरक्षा संबंधी चिंताएं आर्थिक मुद्दों पर हावी हो गई थीं। ओवरऑल पॉलिसी प्रे*मवर्क (समग्र नीति ढांचा) में ऐसे बदलावों के कारण अब अर्थव्यवस्था नरम पड रही है। प्रौद्योगिकी क्षेत्र के दिग्गजों पर लगातार नीतिगत परिवर्तन तथा सख्ती, बडे बैंकरों और वित्तीय संस्थानों पर हमले, कम्युनिस्ट पार्टी का कॉरपोरेट्स में भारी हस्तक्षेप आदि ने मिलकर चीन के मार्केट और प्रमुख खिलाडयों को नीचे ला दिया है। चीन के सैंट्रल बैंक से लेकर प्रतिभूति प्राधिकरण जैसी विभिन्न पॉलिसी बॉडीज आर्थिक गिरावट से निपटने के लिए कार्रवाई में जुट गए हैं। चीन के सैंट्रल बैंक, पी.बी.ओ.सी., ने कीमतों में और गिरावट को रोकने और उपभोत्त*ा खर्च को प्रोत्साहित करने के लिए आज आज १४२ अरब डॉलर बाजार में छोडा जिससे कंज्यूमर सैंटीमैंट (खरीददार के मनोबल) में सुधार आए और बिक्री बढे। यह प्रोत्साहन पैकेज चीन में छुट्टियों के मौसम के दौरान सामने आया है। देश के आर्थिक अधिकारी चिंतित है कि सरकार द्वारा घोषित जी.डी.पी. वृद्धि का लक्ष्य इस साल पूरा नहीं हो सकता क्योंकि, अब सिर्फ तीन महीने बचे हैं। अब समस्या जरुरत से ज्यादा आपूर्ति की है। निवेश और क्षमता बढाने पर निर्भर रहने वाले, सिलसिलेवार नीति ढांचे ने, अर्थव्यवस्था की क्षमता से ज्यादा क्षमता और आवास स्टॉक पैदा किए हैं। ओवरऑल पॉलिसी अपने बजट फण्ड करने के लिए, लगातार बढते आवास मार्केट और स्थानीय अधिकारियों द्वारा भूमि बिक्री पर निर्भर हो गई थी। लेकिन ये नितियाँ कुछ सीमाओं तक ही मदद कर सकती हैं। कुछ समय से चीनी आर्थिक मार्करो ने आवास मार्केट की मदद करने की कोशिश की है। लेकिन ये काम नहीं कर रहे हैं, और आवास स्टॉक अभी भी बहुत बडे हैं। नीतिगत हस्तक्षेप का दूसरा चरण शेयर बाजारों को ऊपर उठाना रहा है। शेयर बाजारों में कुछ हद तक उछाल आया है, लेकिन, बाजारों को डर है कि मार्केट एक बार फिर डूब सकता है। रैपो रेट जैसी नीतिगत दरों में लगातार कटौती ने लगभग १८ ट्रिलियन युआन सिस्टम में डाले हैं। इससे उपभोत्त*ा मांग में वृद्धि होने की उम्मीद है और साथ ही वित्तीय बाजारों पर भी इसका प्रभाव पडेगा। रैपो रेट्स में कई बार कटौती की गई है।
राहुल गांधी की दलित राजनीति की अग्नि परीक्षा है हरियाणा में
-श्रीनंद झा- -राष्ट्रदूत दिल्ली ब्यूरो- नई दिल्ली, २४ सितम्बर। ऐसी संभावना दिखाई नहीं दे रही कि भूपिन्दर सिंह हूडा बनाम कुमारी सैलजा की लडाई हरियाणा में ५ अक्टूबर के चुनावों में कांग्रेस के आग बढते हुये कदमों को रोक सकेगी, लेकिन इस मुद्दे ने राहुल गांधी की दलित समर्थक छवि तथा जातिगत जनगणना के प्रचार अभियान के समक्ष एक गंभीर चुनौती तो प्रस्तुत कर ही दी है। जहाँ हूडा पिता एवं पुत्र ने पूरे प्रचार-अभियान का नियंत्रण अपने हाथों में ले रखा है, वहीं कांग्रेस नेतृत्व (मल्लिकार्जुन खडगे तथा गांधी परिवार) कांग्रेस की जीत की स्थिति में मुख्यमंत्री के रूप में दलित नेता सैलजा की ताजपोशी के लिये जबरदस्त दबाव में आ गया है। कुमारी सैलजा, जो सोनिया गांधी के नजदीक मानी जाती हैं, ने अपनी यह इच्छा २२ सितम्बर को नई दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष खडगे के साथ हुई उनकी मीटिंग में, स्पष्ट शब्दों में व्यत्त* कर दी थी। उन्होंने खडगे से कह दिया था कि जैसा कि राज्य के हाल ही के घटनाक्रम से जाहिर है, वे राज्य के सर्वोच्च पद के लिये अपनी लडाई को मूर्तरूप देने के लिये दृढ प्रतिज्ञ हैं। उन्होंने पिछले ११ दिनों में पार्टी का प्रचार नहीं किया है और उससे पहले भी ये दोनों नेता (हूडा और सैलजा) राज्य के अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग सभाओं को संबोधित कर रहे थे। सैलजा चंद रोज पहले आयोजित चुनाव घोषणा पत्र के लोकार्पण समारोह में भी उपस्थित नहीं हुई थीं। प्रसंगवश बता दें कि दलित मतदाता राज्य के कुल मतदाताओं के करीब २० प्रतिशत हैं। गृह मंत्री अमित शाह से लेकर मनोहर लाल खट्टर तक तमाम भाजपा नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व द्वारा एक दलित महिला के अपमान को लेकर एक पूरा आख्यान गढने की कोशिश की है। इस बिन्दु को लेकर भाजपा नेताओं के तेवर खासतौर से उस समय और ज्यादा तीखे और स्पष्ट हो गये, जब हुडा के नजदीक माने जाने वाले एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने सैलजा के खिलाप* उनकी जाति को लेकर टिप्पणी की। खट्टर ने तो सैलजा के समक्ष भाजपा में शामिल होने का प्रस्ताव भी रख दिया। रणवीर सिह सुरजेवाला तथा कुमारी सैलजा के नेतृत्व वाले गुट इस बात से और भी नाराज हैं कि उन्हें टिकट-वितरण की कवायद से बाहर रखा गया है। कांग्रेस नेतृत्व के सामने दुविधा यह है कि ऐसे समय पर, जब ताकतवर जाट समुदाय साप* तौर पर हूडा के पीछे खडा है, कांग्रेस हूडा की लगाम भी नहीं कस सकती है। लेकिन इसके साथ ही कुमारी सैलजा की शिकायतों का समाधान करना भी जरूरी है। सैलजा ने इन अप*वाहों को बकवास बताया है कि वे भाजपा में शामिल हो सकती हैं। उन्होंने कहा है कि वे जल्दी प्रचार करना शुरु कर देंगी। लेकिन खडगे और राहुल गांधी के समक्ष सबसे बडी चुनौती प्रचार के अंतिम सप्ताह में सैलजा, सुरजेवाला और हूडा को एक ही मंच पर लाने की होगी।